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आखिर इस मस्जिद का नाम क्यों पड़ा 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा'? 800 साल पुराना है इतिहास
फीचर डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: सोनू शर्मा Updated Sun, 03 May 2020 10:49 AM IST
क्या आपने 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' देखा है, जो राजस्थान के अजमेर में स्थित है? असल में यह कोई झोंपड़ा नहीं बल्कि एक मस्जिद है, जो सैकड़ों साल पुरानी है। यह भारत की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक और अजमेर का सबसे पुराना स्मारक है। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इस मस्जिद का नाम 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' ही क्यों पड़ा। तो चलिए इसके इतिहास के बारे में आपको बता देते हैं, जो करीब 800 साल पुराना है।
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अढ़ाई दिन का झोंपड़ा, अजमेर
- फोटो : Social media
'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' 1192 ईस्वी में अफगान सेनापति मोहम्मद गोरी के आदेश पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था। असल में इस जगह पर एक बहुत बड़ा संस्कृत विद्यालय (स्कूल) और मंदिर थे, जिन्हें तोड़कर मस्जिद में बदल दिया गया था। अढ़ाई दिन के झोपड़े के मुख्य द्वार के बायीं ओर संगमरमर का बना एक शिलालेख भी है, जिसपर संस्कृत में उस विद्यालय का जिक्र किया गया है।
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अढ़ाई दिन का झोंपड़ा, अजमेर
- फोटो : Social media
इस मस्जिद में कुल 70 स्तंभ हैं। असल में ये स्तंभ उन मंदिरों के हैं, जिन्हें धवस्त कर दिया गया था, लेकिन स्तंभों को वैसे ही रहने दिया गया था। इन स्तंभों की ऊंचाई करीब 25 फीट है और हर स्तंभ पर खूबसूरत नक्काशी की गई है। 90 के दशक में यहां कई प्राचीन मूर्तियां ऐसे ही बिखरी पड़ी थीं, जिन्हें बाद में संरक्षित किया गया।
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अढ़ाई दिन का झोंपड़ा, अजमेर
- फोटो : Social media
अढ़ाई दिन के झोंपड़े का आधे से ज्यादा हिस्सा मंदिर का होने के कारण यह अंदर से मस्जिद न लगकर किसी मंदिर की तरह ही दिखाई देता है। हालांकि जो नई दीवारें बनवाई गईं, उनपर कुरान की आयतें जरूर लिखी गई हैं, जिससे ये पता चलता है कि यह एक मस्जिद है।
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अढ़ाई दिन का झोंपड़ा, अजमेर
- फोटो : Social media
माना जाता है कि इस मस्जिद को बनने में ढाई दिन यानी मात्र 60 घंटे का समय लगा था, इसलिए इसे 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' कहा जाने लगा। हालांकि कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यहां चलने वाले ढाई दिन के उर्स (मेला) के कारण इसका नाम 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' पड़ा था।
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